* क्या हाल-चाल हैं?
* उसका चाल-चलन कैसा है?
* पूत के पाँव पालने में पहचाने जाते हैं।
आवागमन करते मनुष्य Walking
यह कहावत अनादि काल से चली आ रही है:
पूत के पाँव पालने में पहचाने जाते हैं।
पूत के नाक, कान, मुँह आदि बहुत कुछ हैं तब पालने में पाँव ही क्यों पहिचाने जाते हैं, यह सोचने की बात है?
घर नारी से होता है। उजड़ मनुष्य का संबंध भी अगर सुयोग्य नारी से हो जाए तो वें घर सरसब्ज होते देखे गये हैं, और ठीक इसका उल्टा होने पर उजड़ते भी देखे गये हैं। इसीलिए व्याख्या भी नारी की चाल की ही होती है जैसे: हिरनी जैसी चाल, नागिन जैसी चाल, हस्तिनी जैसी चाल आदि-आदि। यद्यपि महत्व पुरुष की चल का भी बराबर ही होता है। भारत में आज भी दुल्हन की चाल देखने की, उसके पैर देखने की और उसके पैरों के छाप लेने की प्रथा देखने को मिलती है।
किसी से मिलते ही या बात करने पर सामान्यत: पहला वाक्य होता है: क्या हाल-चाल हैं?
किसी के बारें में जानकारी करने के लिए पहला वाक्य होता है: उसका चाल-चलन कैसा है?
इन सबसे ज्ञात होता है कि चाल का बहुत महत्व है। मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षियों की चाल का भी बराबर महत्व है। रात के अंधेरे में मचान पर बैठा शिकारी चलने की आवाज़ से ही जान लेता है कि कौन पशु जा रहा है? वह पशु ऐसे ही जा रहा है या किसी दबाव में है आदि-आदि।
मौलिक चाल तो होती ही है लेकिन चाल पर तत्काल की भावनाओं, परिस्थितियों का भी प्रभाव पड़ता है। चाल से खुशी और गम तक का पता चलाया जा सकता है।
किसी देश या क्षेत्र के जनमानस की चाल-चलन भी उस देश/ क्षेत्र के विषय में सब कुछ बखान कर देता है। देश के चाल चलन का अर्थ होता है वहाँ सड़कों की प्रकार और दशा, उन पर आवागमन करने वालों की तहज़ीब और तमीज़, लियाकत। इससे ही वहां की आर्थिक दशा, शासन-प्रशासन की गुणता, जनमानस के नैतिक स्तर आदि का संपूर्ण ज्ञान हो जाता है। और किसी भी सर्वेक्षण की ज़रूरत नहीं रह जाती है। जहाँ की सड़कें स्तर की न हों और उनका उपयोग करने वालों को तहज़ीब, तमीज़, लियाक़त न हो तो उस इलाक़े/ देश की प्रगति करने की बात करना फ़िजूल है। जहाँ की गवर्नएन्स चाल-चलन की प्राथमिकता को ही पूरा नहीं कर पा रही हो वहाँ क्या खाक तरक्की हो सकेगी। वें तो जो कर रहे हैं सब दूसरों के लिए कर रहे होते हैं, ठीक गुलामों की तरह।
इस विषय के पारखी अल्प समय में ही सब कुछ बखान कर सकते हैं। मनुष्य की चाल इतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी की उसके उंगलियों की छाप।
चाल-चलन अर्थात Walking ज्योतिष की तरह ही विज्ञान की एक शाखा कहा जा सकता है। चाल से भूत, भविष्य और वर्तमान बताया जा सकता है। आज विदेशों में इस विषय पर शोध हो रहे हैं। इस पर भारत में अभी कोई शोध किया गया हो ऐसा कोई लेखा-जोखा नहीं देखा गया है।
मौलिकता और कृत्रिम लगभग एक जैसा बनाया जा सकता है लेकिन समान कदापि नहीं बनाया जा सकता है। जैसे सोना तो सोना ही होता है लेकिन पीतल आदि को बफिंग, पोलिश करके सोने जैसा बनाना का प्रयास किया जाता रहा है, तभी तो नकली बनाने, धोखाधड़ी की उपज हुई है। इसी तरह से ज्योतिष आदि विज्ञान भी मनुष्य जन्म से ही लेकर पैदा होता है और इस विषय के प्रबुद्ध पारखी विद्वान जन्म कुंडली से, नवजात को देखकर ही बहुत कुछ बता सकते हैं। तब भी शोध कार्य हेतु कृत्रिम को भी गौण नहीं किया जा सकता है, उसका भी अपना ही महत्व है। इसलिए शोध करने वाले भी महत्वपूर्ण होते है और विज्ञान की उपलब्धियों को जनसाधारण के लिए उपयोगी बनाने में उनका भी महत्वपूर्ण योगदान होता है।
आज इस महत्वपूर्ण विषय पर फ्रांस, आस्ट्रेलिया आदि देशों में शोध हो रहे हैं। भारत को भी इस विषय पर शोध में आगे बढ़ना चाहिए और उपलब्ध ग्रंथों में उल्लिखित इस विषयक तथ्यों का भी संकलन करना चाहिए ताकि यह विज्ञान और इसकी उपलब्धि जनमानस के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकें।
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