`एक सारगर्भित प्रसंग तीन भाग में'
`भाग: दो'
* पारखी अनेक विधियों से द्रव्य का आंकलन कर सकते हैं भले ही बाकी बहुत कुछ बदला हो।
* किसी भी मनुष्य अथवा तिर्यंच के गुण/ आचरण का निर्धारण द्रव्य, काल, क्षेत्र, भाव और भव से होता है।
* प्रशिक्षण, शिक्षा तो पालिश की भाँति है जो फिनिशिंग तो कर सकती है, द्रव्य को परिवर्तित नहीं कर सकती है।
महाराज बृजभान और कीर्ती की एकान्त में वार्ता
पहले अंक में आपने पढ़ा होगा: राजा ने कीर्ति को घुड़साल से रनवास में तैनात कर दिया था। अब आगे पढ़िए:
कुछ दिनों बाद राजा ने कीर्ति को बुलाया और पटरानी के बारें में जानना चाहा तो कीर्ति ने कहा, `महाराज, पटरानी राजघराने की बेटी नहीं है। हाँ इसका बाप कोई राजा-महाराजा होना चाहिए।’
यह सुनते ही राजा के होश उड़ गये। राजा ने अपनी ससुराल में संपर्क करके पूरी बात की खोजबीन की तो असलियत का पता चला। राजा के ससुर महाराणा करनी सिंह ने बतलाया कि उनकी बेटी पैदा होते ही मर गयी थी। उसी समय हमारी गडरनी के यहाँ भी तीसरी बेटी हुई थी। हमारी यह पहली संतान थी इसलिए मैंने तुम्हारी सास की जान बचाने के लिए गडरिया की नवजात बालिका को लाकर तुम्हारी सास की गोद में डाल दिया था। और तहकीकात की गयी तो पता चला कि गडरनी के संबंध पड़ौसी राज्य के राजा से थे और यह उन्हीं की संतान थी। गडरनी बेजोड़ सुंदर थी सो उसकी बेटी भी अत्यंत सुंदर हुई, और उसकी सुंदरता के चर्चे थे।'
भेड़ों बकरियों का लहन्डा
महाराज बृजभान ने कीर्ति को एकांत में बुलाया और पूछा, `तुमने पटरानी के बारें में यह सब कैसे जाना?’
`महाराज, मैं पटरानी की आदतों को गौर से देखता रहा। उससे साफ जाहिर हो रहा था कि यह एक ग़रीब माँ और शाही पिता की संतान है।’
इतना सब घट जाने के बाद तो राजा बृजभान का कीर्ति के प्रति स्नेह और सम्मान बहुत बढ़ गया था। उन्होंने कीर्ति का वेतन पचीस स्वर्ण मुद्रा कर दिया, और उसे एक अच्छा छोटा आवास देकर उसके खाने-पीने की समुचित व्यवस्था कर दी गयी। कीर्ति को अब रनवास से हटाकर दरबार में ही तैनात कर लिया गया था।
भाग-एक पढ़ने के लिए क्लिक करें:
`बाण वाले की बाण ना जा, कुत्ता मुत्ते टाँग ठा'
Note:संदर्भ आसपास बिखरी दंत कथाएं।
क्रमश: तीसरा भाग
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