`एक सारगर्भित प्रसंग तीन भाग में'
`भाग: एक'
* पारखी अनेक विधियों से द्रव्य का आंकलन कर सकते हैं भले ही बाकी बहुत कुछ बदला हो।
* किसी भी मनुष्य अथवा तिर्यंच के गुण/ आचरण का निर्धारण द्रव्य, काल, क्षेत्र, भाव और भव से होता है।
* प्रशिक्षण, शिक्षा तो पालिश की भाँति है जो फिनिशिंग तो कर सकती है, द्रव्य को परिवर्तित नहीं कर सकती है।
महाराज बृजभान के दरबार में अजनबी आगन्तुक
कुंडलपुर के सम्राट बृजभान का दरबार लगा था। एक अजनबी ने दरबार में दस्तक दी। यद्यपि उसके वस्त्र संभ्रात न थे किंतु उसकी नीडरता, बुद्धिमत्ता का आभास उसका चेहरा देखकर ही हो जा रहा था।
महाराज ने प्रश्न किया, `आप कौन हैं?’
`आप सबके लिए तो एक अजनबी हूँ। किसी काम की तलाश में आया था ताकि आजीविका चल सके।’
इस पर महाराज ने और कुछ न पूछकर केवल यह पूछा, `क्या काम कर सकते हो?’
`वैसे तो जो कोई भी मनुष्य कर सकता है वें सभी काम मैं भी कर सकता हूँ, पर मैं उड़ती चिड़िया को पहचान सकता हूँ।’
`तुम्हारा नाम क्या है?’
`महाराज श्री, मेरा नाम कीर्ति है.’
राजा को उसकी बात में दम लगा तो उन्होंने पूछा, `क्या वेतन लोगे?’
`मेरे काम पर महाराज का विश्वास होने तक केवल दो जून का शाकाहारी भोजन और सिर छुपाने को जगह व एक खटिया।’
राजा के यहाँ नौकर-चाकरों की भरमार थी तो भी अजनबी को उस समय से ही रख लिया गया और घुड़साल में लगा दिया गया।
कुछ दिनों बाद राजा ने कीर्ति को तलब किया और अपने सबसे महँगे और चहेते घोड़े के बारें में पूछा। इस पर कीर्ति ने कहाँ, `महाराज, वह घोड़ा नस्ली नहीं है।’
यह सुनते ही राजा चौक उठा। उसने घोड़े के मलिक को तलब किया गया और उससे पूछताछ की गयी। घोड़ों के व्यापारी ने बताया कि यह घोड़ा उसकी घुड़साल में ही पैदा हुआ और पला है। यह नस्ली है। हाँ एक बात और है कि जब यह पैदा हुआ था तो इसकी माँ मर गयी थी। इसे गाय का दूध पिलाकर पाला गया था।'
राजा ने जब इस रहस्य को जानना चाहा तो कीर्ति ने कहा, `महाराज, वह घोड़ा जब घास ख़ाता है तो गायों की तरह सिर नीचा करके ख़ाता है, जबकि नस्ली घोड़ा घास मुंह में लेकर सिर उठा लेता हैं।‘
राजा कीर्ति की बुद्धिमानी का कायल हो गया, और उसने उसका वेतन 10 स्वर्ण मुद्रा निर्धारित कर दिया। उसे रहने के लिए बेहतर जगह दे दी गयी। यही नहीं, कीर्ति की नियुक्ति घुड़साल से हटाकर रनवास में कर दी गयी।
Note:संदर्भ आसपास बिखरी दंत कथाएं।
क्रमश: दूसरा भाग
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