ग्लोबल:   `कोरोना निर्जीव एक उत्प्रेरक या....?, और विश्व युद्ध की सम्भावनाएं’


कोरोना से उत्पन्न महामारी के वायरस का सम्भावित स्ट्रक्चर

आज दुनिया कोरोना महामारी से झूझ रही है। दिनांक 13.07.2020 तक कोरोना महामारी के कहर का ब्योरा नीचे दिया गया है। कोरोना इस समय प्रति दिन दुनिया के 230000 से भी ज्यादा लोगों को संक्रमणित कर रहा है। मजेदार बात यह है कि दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाले देश चीन में अन्य की तुलना में इसका प्रसार नगण्य है। चीन कोरोना महामारी का उद्भव स्थान कहा जाता है।


दुनिया में कोरोना से उत्पन्न महामारी के 13 जौलाई, 2020 के आंकड़े

जीव यानि आत्मा सहित शरीर एक प्राणी माना जाता है। हम और किसी प्राणी के विवाद में न पड़कर सीधे मानव पर आते हैं। इस लोक में जितने भी मानव है उन्हें हवा और पानी की आवश्यकता होती है। इन दोनों को चाहे कोई किसी भी माध्यम से ग्रहण करता हो लेकिन जीवन के लिए आवश्यक वस्तुओं में दोनों प्रमुख हैं।

संसार में कितना भी बड़ा योगी हुआ हो या है लेकिन उसे आक्सीजन चाहिए। यही बात पानी की है। वह पानी सीधे भी ले सकता है और अगर योगी है तो अपनी विशेष ग्रंथि को सक्रिय करके वायुमंडल से भी ग्रहण कर सकता है। पानी में रखे बहुत से पौधों जैसे मनी प्लांट, बांस आदि में हवा और पानी से ही नये पत्ते आते रहते हैं, पौधे वृद्धि करते रहते हैं। इसका अर्थ है कि किसी विशेष ग्रन्थी को सक्रिय करके वायुमंडल से भोजन भी ग्रहण किया जा सकता है और शायद प्राचीन काल में साधु-संत ऐसा कर सकते थे।

श्वांस यानी कि आक्सीजन के बिना बहुत समय तक जीवित नहीं रहा जा सकता है। कारण चाहे जो भी हो लेकिन मृत्यु के समय भी श्वांस का आवागमन ही बंद होता है।

मानव शरीर में श्वांस लेने यानि वायुमंडल या अन्य स्रोत से आक्सीजन लेने की प्रक्रिया का प्राकृतिक रूप से तो नाक/ मुँह से श्वांस नली में होते हुए फेफड़ें माध्यम होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार मनुष्य शरीर में वात, पित्त और कफ को त्रिदोष कहा गया है। इनमें सन्तुलन बना रहने तक मनुष्य स्वस्थ्य होता है। इनमें से कफ का सम्बंध साँस लेने की प्रणाली से है। एक स्वस्थ मनुष्य की श्वसन प्रणाली में यकायक अवरोध श्वांस नली और फेफड़ों में शोथ के कारण या फिर कफ की अधिकता के कारण हो सकता है। अगर शरीर के विभिन्न अंगों को आक्सीजन/ हवा मिलने में कमी आती है तो उससे गुर्दे, यकृत आदि अवयवों की क्रिया बाधित हो जाती हैं।

अब लीजिए आज के ज्वलंत विषय पर आ जाते हैं। कारण चाहे जो हों लेकिन कोरोना वाइरस का दुष्प्रभाव श्वसन प्रणाली को हानि पहुँचना है। यह भी कहा जा रहा है कि कोरोना जीव/ बॅक्टीरिया नहीं बल्कि निर्जीव है। इसका सीधा सा अर्थ यह है कि यह कथित कोरोना वाइरस श्वसन प्रणाली/ क्रिया को बाधित करने में उत्प्रेरक की भूमिका निभाता है। यानी इसका प्रभाव त्रिदोष के संतुलन को बिगाड़ देना है। श्वसन प्रणाली में कफ महत्वपूर्ण भूमिका में है यानि इस वाइरस से समय के साथ साथ कफ की अधिकता से साँस नली संकरी होती जाती है, फेफड़ों में कफ भरता चला जाता है। ऐसे में मनुष्य बल पूर्वक सांस लेने का प्रयास करता है। साँस नली व फेफड़ों में शोथ हो जाता है। अन्त:तोगत्वा कुल मिलाकर साँस लेने में कठिनाई बढ़ती चली जाती है। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि वृद्धजनों की तुलना में युवाओं और बच्चों की साँस नली व फेफड़े अधिक लचीले और शक्तिशाली होते हैं, इसका प्रभाव भी कोरोना के बिमारों में देखा जा रहा है।

कोरोना-19 को लिपिड/ फैट/ वसा के आवरण में प्रोटीन बतलाया जा रहा है। और यह प्रथम चरण में श्वसन क्रिया को ध्वस्त करता है। तत्पश्चात शरीर के विभिन्न महत्वपूर्ण अंग कुप्रभावित होने लगते हैं। लगे हाथ यहाँ यह बतलाते चलें कि श्वसन प्रणाली में मनुष्य के मनोबल की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। आयु के साथ-साथ तथा बीमारी की हालत में इस प्रणाली की क्षमता घटती जाती है जिसके अनेक चयापचय आधारित कारण है।

अगर किसी विधि से कोरोना का लिपीड/ फैट/ वसा खोल टूट जाए तो यह निरापद/ हानि रहित हो जाएगा। वसा के खोल को निष्प्रभावी यानि तोड़ने के लिए:

1. कोरना के वसा के आवरण को मिट्टी के तेल, बेन्जीन, पेट्रोलियम आदि ओरगनिक किसी सॉल्वेंट में घोल दिया जाये।
2. कोरना के वसा के आवरण को किसी क्षार (Plant Alkaloid/ Basic) से साबुनिकरण (Saponification) and fat/ oils were said to be saponified) करा दिया जाए।
3. गर्म पानी आदि से कोरना के खोल का इम्लसिफिकेशन कर दिया जाये।
4. किसी डिटरजेन्ट, साबुन-पानी, पीली मिट्टी आदि से तोड़ दिया जाए। बतलाते चले मिट्टी क्षारीय होती है।
5. टेनिन का प्रयोग करके।
6. स्टेराय्ड, निकोटीन आदि कुछ अन्य पदार्थ कोरोना की चिकित्सा में परखे जा सकते हैं।
7. पुष्पायुर्वेद में सूक्ष्म मात्रा से और अल्प समय में ही चिकित्सा सम्भव हो सकती है। कल्याणकारक ग्रन्थ के अनुसार दुनिया में अनुमानित अट्ठारह हजार तरह के पुष्प हैं।

चमड़ा उद्योग को टॅनरी कहते हैं, और चमड़ा परिशोधन को टॅननिंग कहते हैं। इसका यह नाम चमड़ा परिशोधन में टेनिन का प्रयोग होने के कारण रखा गया है। चमड़ा परिशोधन में खाल से वसा निकालकर उसे शोधित किया जाता है। और यह वसा निकालने में टेनिन काम में लाया जाता है। टेनिन कीकर आदि पेड़ में बहुतायत में होता है। चाय आदि अनेक वनस्पतियें में टेनिक एसिड होता है।

कोरोना का खोल वसा का बतलाया जा रहा है। इसका अर्थ हुआ कि टेनिन भी इसके निदान में कारगर होना चाहिए। टेनिन को खाल से वसा निकालकर उसे चमड़े में परिवर्तित किया जाता है, इस काम के लिए टेनिक एसिड बाहुल्य पेड़-पौधों का प्रयोग किया जाता है। बस इसमें भी कोरोना की चिकित्सा का सूत्र छुपा है।

उक्त सात में से कुछ विधियों की मनुष्य की चिकित्सा में हानिकारक होने के कारण कुछ सीमायें हैं। इस वायरस की चिकित्सा भी इन्हीं से की जाएगी। जैसे गर्म पानी/ पेय, एक्टिवेटेड एल्कलाय्ड, योग, मनुष्य की प्रकृति को बदल देने की प्रक्रिया से जो एसिडिक से बेसिक कर सके। वैसे इससे बचने का बेहतर तरीका जीवन शैली बदल लेना है। एल्कलाय्ड व डिटरजेन्ट आधारित सब्जी, फल, खाद्य पदार्थों का प्रयोग जैसे अदरक, सोडियम बाईकारबोनेट, लहसुन, लौकी, तौरी, अधपकी या कच्ची भिंडी, मेंथी (गर्म होती है) आदि भी इस वाइरस की चिकित्सा में उपयोगी हो सकती हैं। गले को तर रखने के लिए बादाम-मुनक्का-काली मिर्च और मिश्री की पिष्टी, मुलतानी की कूका, हमदर्द की सुआलीन, बेहड़े का छिलका, येष्टीमधु, हरीतकी, लोंग-छोटी इलायची, दालचीनी, अश्नगंधा आदि उपयोगी हो सकती हैं।

फ्रिज में रखा ठंडा पानी/ सामान, आइस-क्रीम, एसी आदि कफ कारक साधानों/ चीज़ों का प्रयोग बंद/ सीमित करना होगा। बाहर निकलते समय और प्रभावित व्यक्ति को मास्क लगा लेना चाहिए। समय-समय पर सावधानियाँ जारी होती रहती हैं, उनका अनुपालन यथेष्ट होगा।

जहाँ तक औषधि का प्रश्न है उसमें Plant Alkaloid/ Basic और टेनिन का उपयोग अवश्य होना चाहिए।

कोरोना से प्रभावित की पहचान तो एक्स-रे स्क्रीनिंग में ही ज्ञात हो जानी चाहिए क्योंकि इसका प्रभाव टीबी, फेफड़ों के कॅन्सर आदि से भिन्न होना चाहिए।

एक बार फिर बतला दें कि अगर कोरोना वायरस निर्जीव है तो इसकी भूमिका कफ वृद्धि में उत्प्रेरक की है, जो कफ की अधिकता के कारण श्वसन प्रणाली को कुप्रभावित करता है। मनुष्य शरीर पर इसका प्रभाव आक्सीजन की कमी के समकक्ष होना चाहिए। कोरोना से बचाव खान-पान और जीवनशैली व्यवस्थित करने से हो सकेगा। इसका टीका एक्टीवेटेड नॅचुरल/ सिंथेटिक एल्कलाय्ड/ स्टाराइड से बनेगा और चिकित्सा का भी यही एकमात्र उपाय है। लिपिड/ फैट/ वसा के सॉल्वेंट बेनज़ीन, केरोसिन आदि का उपयोग मानव के लिए हानि कारक होने के कारण इनका ओरल उपयोग न हो सकेगा हैं।

आयुर्वेद के विभिन्न ग्रन्थों में, निघण्टुओं में बहुत कुछ उल्लेख किया हुआ है जिससे संदर्भ और सहायता ली जा सकती है। वैसे कुछ भी कहें लेकिन अभी तक कोरोना का सही स्ट्रक्चर ही नहीं पता है कि यह बॅक्टीरियल है कि बॅक्टीरिया रहित है। ऐसे में क्या तो कोई दवाई बनाएगा और क्या वॅक्सीन बनाएगा। अलबत्ता आयुर्वेद के अनुसार यह वाइरस त्रिदोष में कफ की अधिकता करके श्वांस नली और फेफड़ों को कफ से भर देता है, जिससे साँस लेने में कठिनाई से आक्सीजन की कमी हो जाती है। इस आधार पर कुछ नुस्खे और दवाई बना सकते हैं। तुलसी, काली मिर्च, सोंठ, कीकर, दालचीनी, बहेड़ा, चाय, मुलहटी, शीलाजीत, तम्बाकू आदि भी कारगर होनी चाहिए। अनुभवी वैद्य/ हकीम और हिकमत के खानदानी व्यक्ति कोरोना का निदान बखूबी कर सकते हैं।

आयुष-64 में अश्वगंधा, येष्टिमधु, गुड़ूची, पिप्पली का प्रयोग किया जा रहा है। इन चारों का विवरण (Constituents) यहाँ नीचे दिया जा रहा है:

1. अश्वगंधा : An alkloid somniferin, resin, fat and coloring matter.
2. येष्टिमधु : Glycyrrhizin, glycyrrhizic acid, and its salt of calcium and potassium.
3. गुड़ूची : The root and stem contain starchy extract, bitter principle and trace of berberine.
4. पिप्पली : Resin, volatile oil, starch, gum, fatty oil, inorganic matter and an alkaloid.

इनका पाउडर बनाकर मिलाकर रख लें। एक कप काढ़ा बनाये और उसमें स्वादानुसार गुड़ डालकर लेवें। चीनी बिल्कुल न डालें। ऐसा काढ़ा दिन में तीन बार सामान्यत और चिकित्सा के रूप में स्थिति के अनुसार दिन में 5-6 बार ले सकते हैं।


कोरोना वैक्सीन के कारगर होने पर वैज्ञानिकों को सन्देह

कोरोना का सम्भावित उद्भव स्थान और भविष्य में युद्ध आदि की सम्भावनायें:

आज कोरोना के कहर को चीन की देन माना जा रहा है। और इसी कारण से दुनिया के अधिकांश देश चीन के विरूद्ध हो रहे हैं. इस समय दुनिया में प्रति दिन दो लाख से भी ज्यादा लोग कोरोना के चपेट में आ रहे हैं। कोरोना चीन की प्रभुत्व की आकांक्षा और विस्तारवादी सोच का परिणाम है।

कोरोना का उद्भव स्थान चीन का वुहान बतलाया जा रहा है। आश्चर्यजनक बात यह है कि चीन दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश होने के बावजूद भी कोरोना की मार से अन्य़ देशों जितना कुप्रभावित नहीं है। चीन में कोरोना का अमेरिका, रूस, भारत जितना प्रसार नहीं हुआ है।

चीन की प्रभुत्व की भावना और विस्तारवादी सोच के साक्ष्य के लिए चीन का 1949 का और आज का मानचित्र देखिए क्या कह रहा है?

अन्त में दिये विवरण के अनुसार चीन ने 43% भाग अन्य देशों का छिना हुआ भूभाग है। इस छिना-झपटी में अनेक देश त्रस्त हैं। तिब्बत जो एक स्वतंत्र देश हुआ करता था उसे तो चीन ने अपने में ही मिला लिया है। जहाँ इन मामलों में संयुक्त राष्ट्र को सकारात्मक भूमिका निभानी चाहिए थी वहाँ वह एक मिट्टी का खिलौना बनकर रह गया है।

दुनिया में कोरोना के कारण जो समीकरण बन रहे हैं, उनमें चीन के पास भारत के साथ युद्ध करने के सिवाय कोई विकल्प नहीं दिखाई दे रहा है। यह हम पहले भी लिख चुके हैं, अक्टूबर, 2020 तक चीन-भारत/ विश्व युद्ध की संभावना दिखाई दे रही है। मुख्य रूप से इसमें चार बड़े देश दो खेमों में बँट जाएँगे और बाकी देश उन्हीं में सम्मिलित होंगे। कम से कम एक बड़े देश का वर्तमान स्वरूप दुनिया के नक्शे से ख़त्म हो सकता है। अगर युद्ध हुआ तो उसके भीषण परिणाम होंगे। चीन द्वारा अनाधिकृत रूप से घेरी ङुई भूमि और देश उसके गिरफ्त से निकल जायेंगे यानि चीन का विघटन होने की प्रबल सम्भावना है।

चीन का 1949 का मानचित्र देखिए, इसके अनुसार चीन और भारत की सीमा कहीं नहीं मिलती थी। साथ ही चीन का वर्तमान मानचित्र देखिए, चीन ने कितना विस्तार कर लिया है। संयुक्त राष्ट्र संघ का यह दायित्व होना चाहिए कि चाहे किसी भी बल का प्रयोग करे किन्तु किसी भी राष्ट्र को दूसरे राष्ट्र या उनकी भूमि अन्य को न हड़पने दे। और जो हड़पी हुई है उसे मुक्त कराये। जहाँ जरूरत हो वहाँ स्थाई सीमा तय करें।

चीन का 1949 का मानचित्र

चीन का वर्तमान मानचित्र

चीन की विस्तारवादी हरकत का विवरण

नोट: मानचित्र और अन्य विवरण वाटसअप और अखबार से लिए गये हैं।

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