धर्म और ध्यान: `30 मार्च, 2020 आज तीसरे तीर्थंकर श्री सम्भवनाथ जी का मोक्ष कल्याणक है’

आज 30 मार्च, 2020 दिन सोमवार, तिथि चैत सुदी 6, वीर निर्वाण संवत 2546 है, और तीसरे तीर्थंकर श्री सम्भवनाथ जी का मोक्ष कल्याणक है।

चिन्ह: अश्व
तीर्थंकर श्री सम्भवनाथ जी

जैन मतानुसार 63 शलाका के महापुरुष होते हैं। इनमें 24 तीर्थंकर भी आते हैं। नियम से 24 तीर्थंकर अयोध्या में जन्म लेते हैं, और श्री सम्मेद शिखर जी से निर्वाण को प्राप्त होते हैं। वर्तमान कालचक्र हुंडा अवसर्पिणी है, इसलिए इसमें यह क्रम भंग हो गया है। इस हुंडा अवसर्पिणी कालचक्र में सभी तीर्थंकरों ने अयोध्या में जन्म नहीं लिया है, और न ही सभी 24 तीर्थंकरों ने श्री सम्मेद शिखर जी से निर्वाण प्राप्त किया है।

श्री सम्मेद शिखर जी से इस कालचक्र के 20 तीर्थंकरों ने निर्वाण प्राप्त किया है। श्री सम्मेद शिखर जी जैन धर्म के अनुयायियों के लिए एक पवित्र/ महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। इस पहाड़ी तीर्थ पर पहाड़ के ऊपर 31 टोंक बनी हैं। इस पर्वत से बीस तीर्थंकरों का निर्वाण यानि मोक्ष गमन हुआ है। दूसरे तीर्थंकर श्री संभवनाथ जी भगवान ने 16 धवल कूट श्री सम्मेद शिखर जी से निर्वाण प्राप्त किया है।

जैन धर्म के अनुयायी वर्तमान चौबीसी के तीर्थंकर भगवानों के पंच कल्याणक: गर्भ, जन्म, तप, केवल ज्ञान और निर्वाण बड़े मन से हर्ष पूर्वक मनाते हैं। इसका उद्देश्य अपने निर्वाण की उत्कृष्ट भावना भाना है।

जम्बूव्दीप के दक्षिणी भरतक्षेत्र में श्रावस्ती नामक नगरी है। उस समय श्रावस्ती में इक्ष्वाकुवंश में काश्यपगोत्रीय राजा जितारी राज करते थे। उनकी महारानी का नाम सुषेणा था। माता सुषेणा के गर्भ से कार्तिक शुक्ला पूर्णिमा के दिन मृगशिरा नक्षत्र में मति, श्रुति और अवधिज्ञान के धारी भगवान सम्भवनाथ का जन्म हुआ था।

श्री अजितनाथ तीर्थंकर के तीस करोड़ वर्ष बीत जाने पर तीर्थंकर श्री सम्भवनाथ जी हुए थे।

श्री सम्भवनाथ जी को मेघ देखने से वैराग्य हो गया और उन्होंने मार्गशीर्ष शुक्ला पूर्णिमा के दिन दीक्षा ग्रहण कर ली, तथा कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी के दिन मृगशिरा नक्षत्र में में आपको कैवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ।

साल वृक्ष के नीचे भगवान को कैवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ था

कैवल्य ज्ञान प्राप्ति के बाद कुबेर द्वारा रचे गये मनमोहक समवसरण की रचना की गई।


समवसरण


विहार करते-करके जब भगवान सम्भवनाथ की आयु एक माह शेष रह गई तब वें श्री सम्मेद शिखर पर 16 धवल कूट पहुँचे। वहाँ योग-निरोध कर प्रतिमा-योग से विराजमान हो गये। अघातिया कर्मों का क्षय करके, चैत शुक्ला षष्ठी के दिन मृगशिरा नक्षत्र में श्री जी को सम्मेद शिखर जी की 16 धवल कूट से निर्वाण प्राप्त हुआ।

किसी भी पर्व के मनाने का उद्देश्य मन, वचन और काय से मंगल भावना भाना है ताकि हम भी कर्मों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर सकें।

आज जैन धर्म के अनुयायी तीसरे तीर्थंकर श्री सम्भवनाथ जी का मोक्ष कल्याणक मना रहे हैं।

टोंक नंबर: 16 धवल कूट

दोहा

सम्भवनाथ जिनराज़ का,
धवल कूट वर है जेह।
मन वच तन कर पूजहूँ,
शिखर सम्मेद यज़ेह।।


जैन ग्रन्थों में ऐसा उल्लेख है कि इस टोंक की मन, वचन, तन से भाव सहित वंदना करने से 42 लाख उपवास का फल प्राप्त होता है।

जैन धर्मावलंबियों के अनुसार श्री सम्भवनाथ जी भगवान का प्रतीक चिह्न- अश्व, चैत्यवृक्ष- साल वृक्ष, यक्ष- त्रिमुख, यक्षिणी- प्रज्ञप्ति है। आर्यिका प्रमुख धर्मश्री थी।

श्री सम्मेद शिखर जी का टोंक के नंबर सहित यात्रा मानचित्र

                                       
श्री सम्मेद शिखरजी व टोंक और वंदना के मनमोहक दृश्य

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